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AWARD
Shikha Singh
REGISTRATION ID
B6238
YOUR FINAL SCORE IS IN BETWEEN
9.15 - 9.75
IFHINDIA CONGRATULATE YOU FOR BEING IN THE TOP 10 FINALISTS.
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3. ALL TOP 10 FINALIST INCLUDING YOU MUST PARTICIPATE IN THE MEGA EVENT EITHER OFFLINE OR ONLINE BECAUSE EVEN YOU MAY BE THE ONE WHO WIN THE TITLE FOR SURE.
4. INCASE YOU ARE NOT WILLING TO PARTICIPATE IN THE MEGA EVENT/ AWARD CEREMONY EITHER OFFLINE OR ONLINE then your journey in the contest will end here. HOWEVER YOU WILL STILL RECEIVE THE BEST 25 WRITERS BENEFITS but you will not get any benefits for being in the TOP 10 incase you quit from the contest hereafter.
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Written By
Shikha Singh
रामलाल निश्छल स्वभाव और स्वाभिमान को ही अपनी जमा पूंजी मानने वाला आदर्श पुत्र । चूंकि रामलाल के पिता एक छोटे से गाँव में रहकर अपनी पैतृक कृषि योग्य भूमि पर दिन रात मेहनत कर परिवार का पालन – पोषण कर रहे थे, लेकिन अपने संघर्षों व दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ अपने पुत्र को उस समय शहर भेजकर उच्च शिक्षा के लिए भेजा जब लोग शिक्षा को महत्व ही नहीं देते थे, खासकर ग्रामीण क्षेत्र में तो लोग शिक्षा के मायने समय व्यर्थ करने के अलावा कुछ भी नही मानते थे, ऐसे में रामलाल के पिता ने अपने पुत्र को एम.ए. तक की उच्च शिक्षा ग्रहण करवाने के लिए सब कुछ दांव पर लगा दिया और रामलाल शहर में रहकर परास्नातक की शिक्षा ग्रहण करने के साथ-साथ वृद्ध पिता का बोझ कम करने व अपने खर्च के लिए ट्यूशन भी पढ़ाने लगे लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था।
रामलाल के सिर से पिता का साया उठ गया ,जिसके चलते इकलौते पुत्र होने का दायित्व निभाने के लिए वापस गाँव आने की विवशता थी, इसलिए पढ़ाई अधूरी छोड़कर रामलाल वापस गाँव आ गया और पुश्तैनी जमीन पर कृषि कार्य करते हुए माँ की बात मानते हुए बगल के ही गाँव के एक किसान छेनीलाल की पुत्री निर्मला देवी से वैवाहिक जीवन शुरू कर पूर्ण रूप से घर-गृहस्थी में रम गया। चूंकि रामलाल की पत्नी हृदय से निर्मल स्वभाव की थी, एवं गाँव के ही सरकारी विद्यालय से कक्षा 5 तक की शिक्षा ग्रहण कर चुकी थी, एवं हृदय में आगे की शिक्षा ग्रहण करने की इच्छा को परिवार की स्थिति के आगे दबकर शेष ग्रामीण महिलाओं व युवतियों की तरह ही गृहकार्य में हाथ बँटाने लगी एवं विवशता में इस बात को स्वीकार कर लिया कि पुरुष-प्रधान समाज में स्वतंत्रता पूर्वक सभी कार्य करने का हक केवल पुरुषों को ही है और स्वयं पतिव्रता धर्म का पालन करती रही। इसी तरह धीरे-धीरे ढाई से तीन वर्षों का समय कब पँख लगाकर व्यतीत हो गया पता ही नही चला। विवाह के तीन वर्ष पश्चात रामलाल के घर एक बच्चे की किलकारी की गूंज सुनाई दी। निर्मला देवी ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका अत्यन्त सुन्दर चेहरा मानो जो देखे देखता ही रह जाए, उसका गोरा रंग नयन-नक्श, जैसे ईश्वर ने स्वयं अपने हाथों तराशा हो उसे, एक जीती जागती मूर्ति की तरह मनमोहक। रमा बाई जो नाते से उसकी दादी है, अपने पोते को देखकर तो उनके खुशी का ठिकाना ही नहीं था।
गोद में लिए हुए अपनी बहू से बस अपने पोते का बखान करने में लगी थी।
रमा बाई – “देखो तो लल्ला हूबहू अपने बाबू में पड़ा है”।
उनकी बात सुनकर निर्मला देवी भी कैसे चुप रहती।
निर्मला देवी – “हाँ, माँ जी ये बिल्कुल उनकी ही शक्ल पाया है”।
दोनों स्त्रियों की बात सुनकर रामलाल भी अपने भावों को व्यक्त करने से स्वयं को रोक ना पाए, वे भी बोल पड़े।
रामलाल – ” हाँ आप दोनों बिल्कुल सही कह रही हैं, मेरा पुत्र मुझ पर गया है, परन्तु बिटिया बिल्कुल निर्मला की तरह होगी “।
निर्मला देवी – ” हाँ सही कह रहे हैं , मैं ही उसे लड़की होने का सारा संस्कार दूंगी”।
रामलाल – “संस्कार तो ठीक है निर्मला, पर मैं दोनों बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाऊंगा”।
रमा बाई – “अरे बेटा पढ़े तो ठीक है बिटिया ना पढ़े तो भी कोई बात नहीं, वो तो पराया धन है, उसे तो चूल्हा चौका ही करना है, वो पढ़ कर क्या करेगी।”
निर्मला देवी – “हाँ, माँ जी आप सही कह रही हैं”।
रामलाल दोनों स्त्रियों की बात सुनकर थोड़े चिंतित हुए, और कुछ सोचते हुए, वहां से खेत की तरफ निकलने लगे तभी निर्मला देवी ने उन्हें रोका।
निर्मला देवी – “अरे खाना तो खा के जाइए”।
रामलाल – “लौटकर खाता हूं, खेत पर कुछ काम बाकी है”।
रामलाल खेत पर पहुँच कर पेड़ के नीचे बैठकर घंटों सोचते रहे कि वो भले ही अपना सपना पूरा नहीं कर पाए परन्तु अपने बच्चों की शिक्षा और परवरिश अच्छे से पूरा कर अपने पिता का धर्म निभाएंगे भले फिर वो उनकी पुत्री हो या पुत्र।
समय कहां रुकता है, कब पांच साल बीत गए पता ही नहीं चला। रामलाल का बेटा पांच साल का हो गया, और गांव से थोड़ा दूर ही विद्यायल में उसका दाखिला हो गया। अब वो रोज तैयार होकर बस्ता पीठ पर लादे हुए पढ़ने जाने लगा और दिनभर पढ़ने के बाद शाम को लौट कर अपनी माता को सारा हाल सुनाता था। सब कुछ कुशल मंगल गुजर रहा था । इसी बीच निर्मला देवी पुन: पेट से हो गई। रामलाल चाहते थे कि इस बार उन्हें पुत्री धन की प्राप्ति हो जाए, तो परिवार पूरा हो जाए। मानो भगवान ने जैसे उनकी बात सुन ली, नौ महीने बाद निर्मला देवी ने एक सुंदर कन्या को जन्म दिया। अत्यन्त मनमोहक गोरा रंग, बड़ी-बड़ी आँखें, काले बाल मानो साक्षात परी धरती पर अवतरित हो गई हो। सब प्रसन्न हुए, और हो भी क्यों ना ..? लक्ष्मी जो आ गई घर में। रामलाल का पुत्र श्यामू भी अत्यन्त प्रसन्न था, क्योंकि उसके साथ खेलने वाली जो आ गई थी। वो अपनी भावनाओं को रोक ही नहीं पा रहा था, झट से उसकी उंगलियां पकड़ कर अपनी माँ से कहने लगा।
श्यामू – ” माँ अब नन्ही मेरे साथ खेलेगी।”
निर्मला देवी – “हाँ रे, खूब खेलना तू इसके साथ, पर तू पहले इसे थोड़ा बड़ा तो हो जाने दे।”
धीरे-धीरे वक्त के साथ बिटिया भी बड़ी हो गई । उसका नाम सबने मिलकर सीता रखा, और वो बिल्कुल अपने नाम के जैसे ही। वो हूबहू, उतनी ही सुंदर सुशील , चरित्रवान गुणवान, मानो सीता जी स्वयं उसमें विराजमान हो। रामलाल के दोनों बच्चे अत्यन्त सुन्दर और गुणवान थे। सारे गांव वाले कहते थे कि पुत्र-पुत्री तो भगवान ने रामलाल को दिया दोनों ही अत्यन्त सुंदर और गुणवान हैं। बिटिया भी अब पढ़ने योग्य हो गई थी, इसलिए रामलाल ने बिना देर किए बिटिया का दाखिला भी वहीं सरकारी स्कूल में करा दिया जहां श्यामू पढ़ता था, ताकि दोनों एक साथ रहें। उनके दोनों बच्चे पढ़ाई में बहुत अच्छे थे। रामलाल और निर्मला देवी दोनों ही ऐसे बच्चों को जन्म देकर अत्यन्त प्रसन्न थे।
समय के साथ बेटा हाईस्कूल में पहुँच गया, और बोर्ड का पेपर दिया। पिता रामलाल अभी से उसको शहर भेज कर आगे की शिक्षा देना चाहते थे, इसलिए उन्होंने उसे शहर भेज दिया ताकि वो अपनी उच्च शिक्षा बेहतर ढंग से पूरी कर सके। परन्तु भाई के जाने से अब सीता अकेली हो गई थी । जिसके कारण निर्मला देवी को समाज में फैली बुराइयों एवं लोगों की नजरों से अपनी बेटी की सुरक्षा की चिंता होती थी। उन्होंने रामलाल से बात की।
निर्मला देवी – ” जितना पढ़ना था पढ़ ली। अब श्यामू नहीं है, बिटिया को पढ़ने मत भेजिए। कल को कुछ ऊँच-नीच हो गई तो”।
रामलाल – ” हाँ देखता हूँ”।
बिटिया की पढ़ाई की ललक देखकर रामलाल नहीं माने और उसे पढ़ने के लिए भेजते रहे।
उनका बेटा दिल्ली जाकर नौकरी की तैयारी करने लगा बीच-बीच में घर आता-जाता रहता था, और सीता भी अब हाईस्कूल में पहुँच गई थी। बिटिया के बड़े हो जाने के कारण घर की दोनों स्त्रियाँ रमा बाई और निर्मला देवी ने मिलकर फैसला किया कि अब रामलाल से एकसाथ बात करेंगी कि अब सीता को विद्यालय ना भेजकर घर के काम सिखाए जाएँ। वे सीता के बोर्ड पेपर खत्म होने का इंतज़ार कर रही थी। परन्तु बिटिया जब हाईस्कूल में 90% नंबरों से पास हुई, पिता रामलाल की उम्मीद बढ़ गई। श्यामू जहां सिविल सर्विस की तैयारी कर रहा था, वहीं बिटिया की मैथ, साइंस, अंग्रेजी में बहुत अच्छी पकड़ थी। रामलाल अब चाहते थे कि बिटिया को भी अब शहर भेजें।उन्होंने निर्मला देवी को ये बात बताई। निर्मला देवी क्रोधित हुई और अपने सास से सारी बात कही।
निर्मला देवी -” मां जी आप ही अब इन्हे समझाएँ कि बिटिया को बाहर पढ़ने भेजने की क्या जरूरत है।”
यह सुनकर रमाबाई भी रामलाल को समझाती हैं।
रमाबाई – “बाबू बिटिया का जन्म तो शादी करके ससुराल जाने के लिए होता है, ये पढ़ कर क्या करेगी”।
रामलाल – “आप लोग कुछ भी कहें मेरी बिटिया जरूर जाएगी। और फिर वहाँ तो श्यामू भी है न, आपका लाड़ला वहीं साथ रहेगा।”
सबके मना करने पर भी रामलाल नहीं माने और उन्होंने सीता को श्यामू के पास भेज दिया। दोनों दिल्ली में अपनी पढ़ाई करते रहे। इंटर की परीक्षा भी समय निकलते हो गई। इसबार भी सीता बहुत अच्छे पर्सेंट लाई। अब सीता बीटेक करना चाहती थी, बचपन से ही वो इंजीनियर बनने के सपने देखती थी।
उसने पिता रामलाल को सारी बात बताई। पिता भी तैयार हो गए परन्तु उन्होंने निर्मला देवी को नहीं बताया क्योंकि उन्हें डर था कि वो मना ना कर दें। सीता को बीटेक में इंट्रेस देने के बाद गवर्मेंट कॉलेज मिला। यहीं से उसके सपनों की शुरुआत हुई। मन में नयी उमंगें लिए वो पढ़ने जाने लगी। रामलाल के दोनों बच्चे एकसाथ पढ़ने लगे। कुछ साल बाद श्यामू का भी यूपीएससी में सेलेक्शन हो गया, बिटिया का भी बीटेक पूरा हो गया। कई साल से बिटिया बाहर थी , जिसके कारण निर्मला देवी भी खुद को रोक नहीं पाई और फिर क्या वो रोज रामलाल से झगड़ा करने लगी।
निर्मला देवी – ” अब श्यामू उसके साथ नहीं रहेगा उसे बुला लीजिए”।
रामलाल भी कबतक रोज की ये लड़ाई-झगड़े सहते! उन्होंने भी तंग आकर बिटिया को वापस बुला लिया।परिवार के लिए सीता घर तो आ गई थी परंतु वो मन से बहुत दुःखी थी, और रोज अपने पिता से उसे पढ़ने जाने दें यही कहती थी।
परन्तु निर्मला देवी रोज उसे समझाती थी।
निर्मला देवी – ” तू अब ससुराल जाकर पढ़ना, तेरे लिए ऐसा लड़का ढूंढेंगे जो तुझे पढ़ाए।”
मां के आगे सीता कुछ बोल नहीं पाई।रामलाल भी अब रोज की लड़ाई से तंग आ गए थे, और हालात से मजबूर होकर उन्होंने सोचा की वो अपनी बिटिया की शादी किसी पढ़े-लिखे लड़के से करेंगे जो उनकी बिटिया को आगे पढ़ा सके।
उन्होंने अपनी पुत्री के लिए रिश्ता ढूंढ़ना शुरू किया और जल्दी ही उनकी तलाश पूरी हुई। बगल के ही गांव के मास्टर रमाशंकर का लड़का मोहन जो खुद सरकारी टीचर था, और शहर में भी रहता था। उन्होंने सीता का विवाह उससे तय कर दिया।रामलाल ने ससुराल वालों से अपने मन की पूरी बात बताई ताकि उसकी पुत्री की शिक्षा जारी रह सके।
रामलाल – ” मेरी बिटिया आगे पढ़ना चाहती है।”
लड़के के पिता और लड़के की माँ दोनो मान गए ।
रमाशंकर – “हाँ क्यों नहीं, जैसे आपने बिटिया को रखा हम भी उसे बेटी की तरह रखेंगे और पढ़ाएंगे।” यह सुनकर रामलाल खुश हुए उनके अंदर आशा की किरण दिखी, चलो बिटिया सही घर जा रही है।
दोनों परिवार वालों ने खुशी-खुशी सीता और मोहन की शादी कर दी। श्यामू उसके लिए बेहतरीन किताबों का तोहफ़ा लाया क्योंकि उसे मालूम था कि उसकी बहन को किताबों से बहुत प्रेम है।
श्यामू ने तोहफ़ा देते हुए अपनी बहन से बात की।
श्यामू – ” लो बहना इसे पढ़ना और पहुँच कर अपने भैया को फोन करना।”
सीता अपने भैया से लिपटकर बहुत रोई और सबका आशीर्वाद लेकर ससुराल चली गई।
सीता ने शादी के बाद सबका दिल जीत लिया। कल की ही आयी लडकी अब सबकी चहिती बन गई थी। शादी के बाद मोहन अपने नौकरी के कारण शहर चला गया, और सीता ससुराल में बैठकर रोज इंतजार करने लगी कि कब ससुराल वाले उसे पढ़ने के लिए शहर भेजेंगे। वो रोज अपने पति से फोन पर पूछती थी कि वो कब उसके साथ रहेगी। यहां गांव में कोचिंग की कोई व्यवस्था नहीं थी, परन्तु मोहन रोज कहकर टाल देता था कि अभी तो उसकी नई शादी हुई है, कुछ दिन मां-बाबा के साथ रहना चाहिए।
देखते-देखते एक साल बीत गया, और सीता का सब्र का बांध टूटता गया, इसी बीच उसका भाई श्यामू उससे मिलने गया, सीता ने उसे पूरी व्यथा सुनाई।
सीता – “भैया लगता है ये लोग मुझे पढ़ने नहीं देंगे, आप ही कुछ कीजिए।”
श्यामू समझ गया अब उसे क्या करना है, उसने एक तरकीब लगाई और ससुराल वालों से कहा।
श्यामू – “मैं अपनी बहन को कुछ दिन के लिए साथ लेकर जा रहा हूँ, माँ- बाबा से भी मिल लेगी और कुछ दिन मेरे साथ रहेगी।”
सीता की सास ने थोड़ा आपत्ति जाहिर की लेकिन उसके ससुर ने मंजूरी दे दी। सीता का तो खुशी का ठिकाना नहीं था। वो जल्दी से सामान पैक करके अपने भैया के साथ शहर चली गई। इस विषय में बस श्यामू ने अपने पिता से बात की थी परन्तु किसी और को ये बात नहीं बताई थी। शहर पहुँच कर श्यामू ने सीता का दाखिला एक कोचिंग में कराया जहां इंजीनियरिंग सर्विसेज की तैयारी कराई जाती थी। समय बीतने के साथ-साथ ससुराल वाले रोज पूछते थे कि सीता कब वापस आएगी, पर श्यामू रोज बहाना बना देता था। ऐसे ही 6 महीने बीत गए, ससुराल वाले भी परेशान हो गए और उन्होंने उसके माता-पिता से भी बात करी कि उनकी बहू का इतने दिन तक बाहर रहना ठीक नहीं है, इसलिए वे उसे भेज दें। रामलाल ने बहाना बनाया कि उसकी मां की तबियत ठीक ना होने के कारण वो कुछ दिन यहीं रुकेगी फिर वे उसे भेज देंगे वो लोग चिंता ना करें।
उधर सीता पूरी तरह से अपनी पढ़ाई में रम गई थी, वो मन लगाकर पढ़ती रही। समय का चक्र चलता गया। एक साल होने को आए, सीता के ससुराल वालों का सब्र का बांध कब तक रहता समय के साथ उसे टूटना ही था।
सीता के ससुर ने मोहन को फोन किया।
रमाशंकर – “बहुत दिन हो गया पता नहीं बहू के घरवाले क्या छुपा रहे तुम जाकर पता लगाओ।”
मोहन – “ठीक है बाबा, मैं कल ही छुट्टी लेकर जाता हूँ।”
अगले दिन ही सुबह पिता के कहे अनुसार मोहन अपने विद्यालय से अवकाश लेकर अपने ससुराल गया परन्तु जो उसे वहां पता चला उसे बहुत अचंभा हुआ। सीता के पिता ने उसे बताया कि वो तो शहर गई है, अपने भाई के पास। ये सुनते ही मोहन अपने ससुराल वालों पर नाराज होने लगा। उसने अपने ससुर जी से श्यामू का पता लिया और उसी समय सीता से मिलने चला गया। उसे वहाँ पहुँच कर पता चला कि सीता यहां शहर में पढ़ाई करने के लिए रुकी है। उसने सीता से सारी बात पूछी, सीता ने मोहन को पूरी बात समझाई।
सीता – “आप लोग मुझे पढ़ने के लिए नहीं भेज रहे थे, इसलिए भैया मुझे यहाँ लेकर आए।”
मोहन को सारी बात समझ आ गई, उसने सीता से कहा।
मोहन – “तुम्हारी जैसी पत्नी पाकर मैं बहुत प्रसन्न हूँ, तुम पढ़ो मैं तुम्हारे साथ हूँ”।
मोहन सीता से गले मिला और फिर अगले दिन वापस आ गया। घर आकर अपने माता-पिता को बताया। पहले तो उसके माता- पिता भी बहुत नाराज हुए परंतु मोहन के समझाने पर वो लोग भी सीता की पढ़ाई के लिए मान गए। मोहन शहर लौट गया, अब रोज सीता को जब भी समय मिलता वो अपने सास-ससुर के हाल-चाल के लिए कॉल करती रहती थी । सीता के ससुराल वाले भी अब अपनी बहू को समझने लगे थे।
धीरे-धीरे समय बिता और सीता की परीक्षा की घड़ी आ गई। जिसका सपना वो बचपन से देखती थी, आज वो दिन उसके सामने था। उसने इंजीनियरिंग सर्विसेज का पेपर दिया और ईश्वर ने भी उसकी मेहनत का फल उसे जल्दी ही दे दिया। कुछ ही महीनों में उसने सभी पेपर पास किए और उसका चयन हो गया। ये समाचार सुनकर सीता की प्रसन्नता का ठिकाना ना रहा, उसने अपने पिता से तुरंत फोन करके बताया। पिता की भी प्रसन्नता का ठिकाना नहीं था। निर्मला देवी भी रामलाल के फैसले पर आज बहुत प्रसन्न थी।
निर्मला देवी – ” बिटिया ने कर दिखाया, आज उसने हमारा नाम रौशन कर दिया।”
रामलाल – “मैं ना कहता था , निर्मला मेरी बिटिया लाखों में एक है।”
निर्मला देवी – ” जी मैं मान गई आपको ।”
जल्द ही ये बात उसके ससुराल में भी पहुँच गई और सभी के मुख पर हर्ष स्पष्ट दिख रहा था। सीता के ससुर जी उसके घर आए वो उसके माता – पिता से मिले और रामलाल से अपनी प्रसन्नता प्रकट की।
रमाशंकर – “आपने तो हमें इंजीनियर बिटिया दे दी।”
यह सुनकर रामलाल का सीना गर्व से चौड़ा हो गया, उसकी आँखों से अश्रुधारा बह निकली और कानों में मानो बस वही शब्द गुजते रहे ” इंजीनियर बिटिया ” ।
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Shikha Singh
ABOVE PHOTOGRAPH WILL BE USED FOR
THE PARTICIPATION CERTIFICATE.
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